छपरियों को रोल मॉडल बनाया जायेगा तो ऐसे कैसे होगा आदिवासी समाज का उत्थान ??
विश्व आदिवासी दिवस विशेष लेख…
अजय भाबर (गंधवानी, धार – मध्यप्रदेश) ✍️
9 अगस्त को पुरी दुनिया संयुक्त राष्ट्र संगठन द्वारा घोषित विश्व आदिवासी दिवस (इंटरनेशनल डे ऑफ दि वर्ल्ड्स इंडीजीनस पीपल्स) मना रहा है। जिसकी थीम (विषय) इस वर्ष 2024 की “इंडीजीनस युथ अस् एजेंट ऑफ चेंज फाॅर सेल्फ डिटर्मीनेशन अर्थात आत्मनिर्णय के लिए परिवर्तन के एजेंट के रूप में आदिवासी/मुलनिवासी युवा” रखी गयी गयी है।
भारत देश मे भी 2010 के बाद से इस विशेष दिन की महत्वता लगातार बढ़ती जा रही है। देश के हर कोने मे बसे आदिवासियों द्वारा बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा। मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र मे बसे आदिवासी भील जनजाति भी जागरूक होकर इस दिन के महत्त्व को समझ कर धुम धाम से जश्न मना रहे है। ज्ञात हो इसी क्षेत्र मे बसे आदिवासी लगातार भील प्रदेश की मांग कर रहे है।
इस बरस का संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित विषय “आत्मनिर्णय के लिए परिवर्तन के एजेंट के रूप में आदिवासी/मुलनिवासी युवा” है लेकिन इसके उलट आदिवासी युवा स्वयं, समाज और राष्ट्र के हित मे कार्य करने और शिक्षा की ओर अग्रसर होने के बजाय भटकता सा नजर आता है।
रुक जाना नही जैसी योजनाओं के चलते बुनियादी शिक्षा ही कमजोर हो गयी है- मध्यप्रदेश मे तो 9वीं कक्षा तक किसी को फेल न करने और 10वीं – 12वीं मे ‘रूक जाना नहीं’ जैसी योजनाओं के चलते बुनियादी शिक्षा ही कमजोर हो गयी है। जिसके कारण प्रतियोगी परिक्षाओं मे सीबीएसई/आईसीएसई के विद्यार्थीयों से पहले ही पिछड़ जाते है। और न के बराबर लोग ही आगे बढ़ पा रहे है।
अश्लील कंटेंट परोसने के साथ-साथ अब धड़ल्ले से चौबीसों घंटे सट्टेबाज़ी भी सीखा रहे है- वही अब कई स्वघोषित सुपरस्टार्स / इंस्टाग्राम इन्फ्लुएंसर्स / कंटेंट क्रेटर्स / गायक / युट्यूबर्स आने वाली नई कोपल पीढ़ी को गुमराह करने का कार्य बखुबी से कर रही है। लगातार अश्लील कंटेंट परोसने के साथ-साथ अब धड़ल्ले से चौबीसों घंटे सट्टेबाज़ी भी सीखा रहे है। जिसकी वज़ह से युवा न सिर्फ गुमराह हो रहे है बल्कि आर्थिक जोखिम भी उठा रहे है। पिछले दिनों ऐसे कलर ट्रेडिंग/गेमिंग/बैटिंग ऐप्स पर आर्थिक जोखिम उठाने के बाद कई लोगों के मानसिक तनाव मे आने की खबरें भी देखने को मिली है। और कल को सट्टेबाज़ी से आर्थिक जोखिम उठाने के बाद किसी की आत्महत्या जैसे गंभीर कदम उठाने की खबरें आये तो हमे आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
लेकिन क्या ये स्वघोषित सुपरस्टार्स / इंस्टाग्राम इन्फ्लुएंसर्स / कंटेंट क्रेटर्स / गायक / युट्यूबर्स ही इसके जिम्मेदार है? तो जवाब है नहीं- उपरोक्त लोगों के साथ साथ जनता और न सिर्फ जनता बल्कि जाने अनजाने मे अब तो कुछ सामाजिक संगठन और सामाजिक कार्यक्रमों के आयोजक भी भागीदार हो रहें। आदिवासी दिवस पर होने वाले आयोजनों मे कई जगह ऐसे स्वघोषित सुपरस्टार्स को अतिथि के तौर पर बुलाया गया है जिनका सामाजिक उत्थान मे हिस्सेदारी जीरो बटे सन्नाटा है लेकिन सट्टेबाजी सिखाने का काम रोजाना कर रहे है। उदाहरण के तौर पर जिया मुनिया, विशाल जामुने, द्वारिका मण्डलोई, प्रियंका मण्डलोई, सोहन बघेल, पुजा मण्डलोई, अर्जुन मेड़ा, अनिल पिपलाज और कई लोग है जिन्हे सामाजिक कार्यक्रमों मे अतिथि के तौर पर बुलाया गया है। जिनका सामाजिक उत्थान और सामाजिक आंदोलनों मे योगदान जीरो बटे सन्नाटा है लेकिन इंस्टाग्राम/युट्यूब पर लाखों मे फॉलोअर्स ले कर बैठे है और दिन रात चंद पैसों के लिये सट्टेबाजी वाले गेमिंग/बैटिंग ऐप्स का प्रचार करते रहते है। खुद 5-10 हजार मे प्रचार कर रहे है और फॉलोअर्स को लाखों मे कमाने का दावा करते है। इनके जो लाखों मे फॉलोअर्स है 70 प्रतिशत 13-24 बरस के युवा है। और इस उम्र मे गुमराह होना कोई हैरत का विषय नही है।
जब सामाजिक कार्यक्रमों मे ऐसे लोगों को रोल मॉडल बनाकर जनता और आने वाली नयी नासमझ पीढ़ी के सामने प्रस्तुत किया जायेगा तो फिर समाज बाबा साहेब, टंट्या भील, बिरसा मुंडा, रानी दुर्गावती नहीं सट्टेबाज और इनके जैसे लोग ही बनेंगे। जो औरों को भी यही सिखायेंगे। और जो रात दिन एक करके समाज उत्थान के लिये अपना सबकुछ दांव पर लगा रहे है उनका नाम भी बहुत कम लोग जानते है।
जिन्हें आदिवासी दिवस का न उद्देश्य पता है और न ही आदिवासियों का इतिहास, उन्हें सेलेब्रिटी बनाया जा रहा है। हमे इस विशेष दिन के उद्देश्य को समझना होगा, अपने इतिहास, अपने पुरखों, जीवन के मुलभाल, अपनी संस्कृति और शिक्षा के महत्त्व को समझना होगा। और उसके अनुरूप समाज को एकजुट, शिक्षित, प्रभावशाली बनाने के निरंतर प्रयास करते रहने होगा अन्यथा हमारे उन्नत समाज के सपने महज सपने ही रह जायेंगे।
अंततः संयुक्त राष्ट्र संगठन द्वारा घोषित विश्व आदिवासी दिवस (इंटरनेशनल डे ऑफ दि वर्ल्ड्स इंडीजीनस पीपल्स) की असीम शुभकामनाएं, सेवा जोहार।
(यह लेखक के निजी विचार है)