आजादी के 76 वर्ष बाद भी अँधेरे मे जीने को मजबूर कई आदिवासी गरीब परिवार, रोशनी लेकर पहुँचे आदिवासी युवा

सौर ऊर्जा सिस्टम की रोशनी से रोशन हुआ घर-आंगन, आदिवासी परिवार के चेहरे खिले
कैसे मना रहे है हम अमृत महोत्सव: शासन प्रशासन कि पहुंच से दूर कई आदिवासी परिवार के पास न सड़क पहुंची न शिक्षा न बिजली और नाही स्वास्थ्य सुविधा 
अलीराजपुर । विशाल चौहान। 
मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले में कई ऐसे गांव है जहां आज भी बिजली नही है, या कह सकते है कि इन गांव में कभी बिजली आई ही नही। अलीराजपुर जिले के सरदार सरोवर बांध का दंश झेल रहे डूब क्षेत्र मे कई आदिवासी गांव है। जहां की भौगोलिक परिस्थिति ने आज तक विकास नही देखा। वही का एक प्रसिद्ध गांव ककराना पेरियातर फलिया जहां जाने के लिए ककराना से करीबन 45 मिनट का सफ़र बोट से तय करना पड़ता है। यह बड़वानी कि सीमा और नर्मदा तट पर स्थित है। जहा पर 17-18 मकान दूर-दूर पहाड़ी पर स्थित है। जहां किसी भी चढ़कर जाना फेफड़े फुला देता है। आजादी के 76 साल बाद भी यहां स्कूल सड़क बिजली नही है ना ही यहां उपस्वास्थ्य केंद्र है। राशन के नाम पर भी यदि कुछ लेना हो तो नाव से 4-5 किमी दूर जाना होता है और हाट बाजार के लिए कुलवट, वालपुर जो करीबन 15 किमी है। इन आदिवासीयो का जीवन आज भी आधारभूत सुविधाओ से कोशो दूर है।

आपको बतादे की शासन कि योजनाओं से अछूते इस गांव का ध्यान आकर्षण पिछले साल अलीराजपुर जिले के सामाजिक कार्यकर्ता नितेश अलावा और साथियों ने बीबीसी न्यूज़ हिन्दी सलमान रावी और टीम के माध्यम से देश दुनियां के सामने बजरी कि कहानी के रुप मे प्रसारित किया था। उक्त समस्याओं से जूझते आदिवासी परिवार को देखकर तत्काल ही कलेक्टर अलीराजपुर डॉ. अभय अरविन्द बेडेकर द्वारा दौरा कर मौक़े पर जाकर उनके राशन पानी कि व्यवस्था कर आगे प्रयास किया।
यहां सौर ऊर्जा सिस्टम लगाना ही एकमात्र विकल्प लगा – उक्त आदिवासी परिवारों की कहानी को देख लखनऊ से एक आदिवासी शुभचिंतक रिटायर्ड महिला अधिकारी प्रतिमा जोहरी ने नितेश अलावा और सहयोगीयों द्वारा सहायता लेकर फिर से वही क्षेत्र भृमण किया। उसके पश्चात से वहां बिजली लाने के प्रयास हेतु विचार किया। किन्तु प्रशासनिक स्तर पर काफ़ी दुर्लभ क्षेत्र और भौगोलिक परिस्थिति अनुसार नाकाम रहा। यहां सौर ऊर्जा सिस्टम लगाना ही एकमात्र विकल्प लगा क्योंकि दुर्गम क्षेत्र है। पहाड़ी इलाका होने से यहां आवागमन का एकमात्र साधन नर्मदा से होकर नाव ही है।

आदिवासी परिवारों के घर आंगन में रोशनी आई- आदिवासी शुभचिंतक लखनऊ के प्रतिमा जोहरी, एक बुजुर्ग माताजी अलमित्रा पटेल, होशंग कम्पनी के एमडी डॉ. रंग, इंजीनियर मंथन राणे होशंग आदि का महत्वपूर्ण योगदान और प्रयास रहा। जिसकी बदौलत सौर स्ट्रीट लाइट्स नितेश अलावा को महाराष्ट्र के रत्नागिरी स्थित पटेल होशंग कंपनी द्वारा चर्चा कर उनके मांग पत्र पर विचार कर भेजी गयी, जो 5 अगस्त को इंदौर पहुंची। जहां से अलीराजपुर बुलाया गया और इन्होने अपनी टीम दोस्तों के साथ जाकर 11 अगस्त दोपहर मे घर-घर जाकर लगाना शुरू किया, जो देर शाम तक चलता रहा। शाम 6:30 बजे तक फ्री हुवे, चुंकि मौसम बारिश का, सफ़र बोट से कर 4-5 किमी जाकर देर शाम वापस लौटे।

घर मे रोशनी देख परिवार की खुशियां देखते ही बनता – सामाजिक कार्यकर्ता नितेश अलावा द्वारा बताया गया कि अंधेरी झोपडीयो मे रोशनी लेकर जाना और लाना ये अपने आपमें एक ऐतिहासिक और अद्धभुत कदम था। बेहद संतुष्ट कर देने वाला ये काम आत्मशांति देने वाला रहा और जिनके घरो मे लाइट्स लगी है उनकी खुशियाँ देखते ही बनता है। वही नितेश अलावा जिला प्रशासन और स्थानीय जनप्रतिनिधियों से इस सबंध मे मिलकर चर्चा कर प्रयास करेंगे और जहां भी ऐसी समस्या है। वहा तक पहुंचकर हर सम्भव मदद करने की कोशिश करेंगे साथ ही बंजर पड़ी भूमि और पहाड़ो पर वृक्षारोपण भी किया जायेगा।

इस कार्य को करने विक्रम सिंह चौहान, रोहित पढ़ियार, प्रणव बघेल, रितुराज लोहार, रड़िया पढ़ियार, सुमसिंह रावत, अनिल खरत, मुकामसिंह रावत, रवी डूडवा, मुकेश कनेश, बरकत भाई आदि ने लाइट्स इंस्टॉलेशन मे महत्वपूर्ण सहयोग भूमिका निभाई।
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